आयुष्मान कार्ड योजना के तहत जिन लोगों की आर्थिक स्थिति कमजोर है, उन्हें इलाज में पांच लाख रुपये तक की मदद मिलती है। लेकिन वास्तविकता में, कार्ड होने के बावजूद कई मरीजों के परिजनों को सर्जरी से पहले हजारों रुपये की दवा खरीदनी पड़ती है और कई निजी और सरकारी अस्पताल अभी तक योजना के तहत बकाया राशि का भुगतान नहीं कर पाए हैं।
आयुष्मान योजना के तहत लोगों को इलाज के लिए पांच लाख रुपये तक की सहायता मिलती है। जिनके पास आयुष्मान योजना का कार्ड है, वे किसी भी अस्पताल में मुफ्त इलाज करवा सकते हैं। लेकिन यहाँ एक अहम बात है।
लोगो को नहीं मिल रही नि:शुल्क सेवा
सरकारी अस्पतालों में भर्ती मरीजों के पास कार्ड है, लेकिन वे बाहर से हजारों रुपये देकर दवा खरीद रहे हैं। दूसरी ओर निजी अस्पतालों में बकाया का बताकर इलाज किया जा रहा है। अधिक बजट आने पर मरीजों को खुद से पैसे देने को कहा जा रहा है। निजी अस्पताल संचालक करोड़ों रुपये का भुगतान नहीं होने का रोना रो रहे हैं। सरकारी अस्पताल में इस तरह के लाभुकों को पूछने वाला कोई नहीं है। लाभ तो मिल रहा है, लेकिन पूरी तरह से मुफ्त सेवा नहीं मिल रही है।
आयुष्मान योजना के तहत लगभग 10 करोड़ रुपये बकाया
आयुष्मान योजना के तहत रिम्स के नोडल अधिकारी डॉ. राकेश रंजन कहते हैं कि मरीजों को इस योजना का लाभ मिलता है, लेकिन कई स्तर पर कमियाँ हैं, जिन्हें ठीक किया जा रहा है। शिकायतों पर तुरंत राहत दी जाती है।
आयुष्मान मित्रों को सजग रखा जाएगा ताकि सभी लाभुकों को सहायता मिले। रिम्स के तहत लगभग 10 करोड़ रुपये का बकाया है, फिर भी योजना को बंद नहीं किया गया है। निजी अस्पतालों में कई इलाज प्रभावित हैं, क्योंकि उनके बकाये का भुगतान नहीं हो पाया है।
पैर की ऑपरेशन के लिए बैंडेज और दवाई लानी पड़ी
पूर्वी सिंहभूम के निवासी आकाश कुमार शर्मा (16 वर्ष) का इलाज रिम्स के आर्थो विभाग में हो रहा है। उसे कुछ दिन पहले ही पैर टूटने के कारण रिम्स में भर्ती किया गया। उसके पास आयुष्मान कार्ड है, फिर भी उसे सर्जरी से पहले मरहम, पट्टी, इंजेक्शन, 400 ग्राम का बैंडेज सहित अन्य 15 हजार रुपये की दवाई लाने को कहा गया।
आकाश कुमार के पिता ने किसी तरह से पैसे जुटाए और सभी चीजें खरीदीं। इसके बाद उनकी सर्जरी हुई। फिर भी हर दिन उन्हें बाहर से दवाई लानी पड़ रही है और वे योजना को सवाल उठा रहे हैं कि आखिर इस कार्ड का क्या फायदा, जब हर चीज के लिए पैसा देना पड़ रहा है। अब उन्हें डर है कि कहीं सर्जरी के लिए भी पैसा मांगा जाए।
इलाज के लिए जेब से लग रहा है पैसा
आर्थो वार्ड में नौकरी के लिए एक छोटी बच्ची टूनी कुमारी का आयुष्मान कार्ड है, लेकिन उसे इससे कोई मदद नहीं मिल रही है। 11 मई से वह अस्पताल में इलाज के लिए है, और उसी दिन से उसकी मां को दवा खरीदने के लिए बाहर जाना पड़ रहा है। उसने कहा कि उसके पास कार्ड है, लेकिन कोई उसे नहीं ले रहा है। उसे समझ में नहीं आ रहा कि कैसे इसका फायदा उठाया जाए। डॉक्टरों से कहने पर कोई भी उत्तर नहीं मिल रहा है, सभी अपनी ड्यूटी में व्यस्त हैं, लेकिन मरीजों के हित में कोई सोचता ही नहीं।
डॉक्टर से पूछने पर मरीजों को पड़ती थी डांट
लाल मोहन सिंह मुंडा खूंटी जिले से रिम्स में इलाज करवाने आए हैं और वे आयुष्मान योजना के लाभार्थी हैं। लेकिन उन्हें इस योजना का लाभ सिर्फ कागजों में ही मिल रहा है। उनका इलाज रिम्स के सर्जरी वार्ड में हो रहा है, जहां पर कार्ड होने के बाद भी उन्हें हर दिन कम से कम 800 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं।
जूनियर डाक्टर हर दिन उन्हें एक नई दवा की लिस्ट देते हैं, जिसे खरीदने के लिए कहा जाता है। कोई सवाल पूछने पर उन्हें डांटकर शांत करा दिया जाता है|
मरीज के बेटे बताते हैं कि कार्ड को रखना ही बेकार है, जब इससे इलाज ही नहीं हो रहा है तो फिर इस योजना का फायदा क्या है। उन्होंने सरकार से गुहार लगायी है कि उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय है, और उनकी मदद की जाए।
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