बीयू के इस पायलट प्रयोग से झारखंड के किसान होंगे खुश! सेब की खेती पर आई बड़ी खबर.

Shivani Gupta
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झारखंड में सेब की खेती के लिए बीयू से एक अच्छी खबर आई है। बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने सेब की खेती के लिए पायलट प्रयोग किया है, जिसमें साबित हुआ कि झारखंड में भी सेब की खेती की जा सकती है। बीयू के कृषि विज्ञानियों ने बताया कि रांची की मिट्टी और मौसम फलों के उपयुक्त हैं।

रांची। पोषक तत्वों से भरपूर शीतोष्ण फल सेब की खेती मुख्य रूप से जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में और कुछ मात्रा में पूर्वोत्तर राज्यों और पंजाब में भी होती है।

सेब विटामिन सी, फाइबर और पोटेशियम से भरपूर होता है। ये हृदय को स्वस्थ रखने, इम्यूनिटी बढ़ाने, पाचन और वजन प्रबंधन में मददगार होता है। सेब कोल्ड और इंफेक्शन से लड़ने में भी सहायक होता है। इसका सेब स्किन और बालों को स्वस्थ रखने में भी मदद करता है और कोलेस्ट्राल को कम करने में भी सहायक होता है।

आरंभिक प्रयोगों से ये पता चला?

बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी रांची में किए गए आरंभिक प्रयोगों से पता चला कि सेब फल रांची में भी उगाए जा सकते हैं। बीयू के हार्टिकल्चरल बायोडायवर्सिटी पार्क में फरवरी 2022 में सेब के तीन प्रजातियों, स्कारलेट स्पर, जेरोमिन, और अन्ना के पौधे लगाए गए थे।

अन्ना प्रजाति के पौधों में इस वर्ष अच्छी संख्या में फल आए हैं। इस पार्क में अन्ना प्रजाति के 18 पौधे लगे हैं। पिछले वर्ष भी कुछ फल थे, लेकिन दूसरे दो प्रजातियों में कोई फलन नहीं हुआ था

पिछले 2 वर्षों में अन्ना प्रजाति के पौधों का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा और उनका विकास भी बेहतर हुआ। ये सभी पौधे डॉ. वाईएस परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, सोलन, हिमाचल प्रदेश से लाए गए थे।

पिछले दो वर्षों में इन पौधों में कुछ पौधे मर भी गए थे। सेब के पौधों में फूल फरवरी महीने में आते हैं और इसके फल जुलाई-अगस्त में पकते हैं।

बीएयू में हो गया है पायलट प्रयोग

बायोडाइवर्सिटी पार्क के प्रभारी वैज्ञानिक डॉ. अब्दुल माजिद अंसारी ने बताया कि यह पायलट प्रयोग इन सेब प्रजातियों की फलन क्षमता की जांच के लिए किया गया था। अन्ना प्रजाति रांची की मिट्टी और मौसम में फल देने में सक्षम है।

उन्होंने कहा कि इसकी गुणवत्ता, स्वाद, प्रति हेक्टेयर उपज और इस क्षेत्र के लिए पैकेज ऑफ प्रैक्टिसेज के बारे में सही प्रयोग और अध्ययन के बाद ही इस क्षेत्र में इसकी व्यावसायिक खेती के लिए कोई सिफारिश की जा सकती है।

उन्होंने बताया कि सेब की सफल खेती के लिए ऊपरी भूमि की अच्छी जल निकासी वाली बलुआही दोमट मिट्टी और अच्छी सिंचाई व्यवस्था जरूरी है।

बीयू के कुलपति डॉ. एससी दुबे ने वानिकी संकाय के डीन डॉ. एमएस मलिक और अनुसंधान निदेशक डॉ. पीके सिंह के साथ बायोडाइवर्सिटी पार्क का दौरा किया।

उन्होंने सुझाव दिया कि झारखंड में सेब की व्यावसायिक खेती के संभावनाओं का निरीक्षण करने के लिए और भी अधिक प्रजातियों का अध्ययन करना चाहिए और इसके खेती से संबंधित पूरी पैकेज प्रणाली का विकास करना चाहिए।

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