नदी में खुदाई कर रहा था एक श्रमिक, तभी उसे खट-खट की आवाज सुनाई दी; पास जाकर देखा तो आंखे फटी की फटी रह गई, पढ़े पूरी ख़बर

Anil kumar
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Image Source: Google/Image Edited By Canva

बांसलोई नदी में पाई गई काले पत्थर की मूर्ति ऐतिहासिक महत्व की हो सकती है। परंतु इसकी उम्र का निश्चय पुरातत्व विभाग की जांच के बाद ही होगा। भूगर्भ विभाग के विशेषज्ञ मानते हैं कि यह मूर्ति लगभग दो हजार साल पुरानी हो सकती है। इसी नदी में एक किलोमीटर दूर 200 साल पहले भी काले पत्थर की मां काली की मूर्ति मिली थी।

बालू खुदाई के दौरान बुधवार को बांसलोई नदी के कुलबोना बालू घाट से मिली काले पत्थर की प्रतिमा ऐतिहासिक महत्व की हो सकती है। इस मूर्ति की उम्र का निश्चय पुरातत्व विभाग की जांच के बाद होगा, परंतु भूगर्भ विभाग के विशेषज्ञ का कहना है कि यह मूर्ति लगभग दो हजार साल पुरानी हो सकती है।

पुरातत्व विभाग को इसकी सातवीं सदी में बनी होने की आशंका है। इसी नदी के पास, एक किलोमीटर की दूरी पर, 200 साल पहले भी काले पत्थर की मां काली की मूर्ति बालू खनन के दौरान मिली थी। इसे गांव के लोगों ने स्थानीय बुढ़ाबाबा शिव मंदिर में रखा है।

बालू खुदाई में पाई गई मूर्ति

कुलबोना गांव के मजदूर संदीप लेट ने बताया कि जहां मूर्ति मिली है, वहां उसने अकेले बालू खुदाई की थी। खुदाई के दौरान उसका बेलचा बार-बार एक पत्थर से टकरा रहा था। उसने सोचा कि पत्थर है और हाथ से उठाने का प्रयास किया, परंतु उठा नहीं पा रहा था, तो उसने साथी मजदूर पृथ्वी लेट को पत्थर हटाने में मदद के लिए बुलाया।

पत्थर में हाथ देते ही दोनों को एहसास हुआ कि यह पत्थर नहीं है। तब दोनों सावधानी से बालू हटाने लगे, तो देखा कि एक काले पत्थर की मूर्ति सीधी पड़ी हुई है। इस दौरान गांव के कई मजदूर पहुंच गए और मूर्ति के पास से बालू को हटाने लगे। इसके बाद ग्रामीणों ने मूर्ति को हाथ लगाया और उसे मां दुर्गा की मूर्ति मानकर पूजा करने लगे। फिर कुछ देर बाद मूर्ति मिलने की खबर पूरे अलग अलग क्षेत्रो में फैल गई। फिर महेशपुर पुलिस ने मूर्ति को जब्त किया और इसे थाने में सुरक्षित रखा।

इंटरनेट पर फैली मूर्ति की वायरल तस्वीर

बुधवार को बालू खुदाई के दौरान मिली मूर्ति की तस्वीर और वीडियो इन दिनों इंटरनेट मीडिया पर वायरल हो रही है। लोग मूर्ति के बारे में विभिन्न कथन कर रहे हैं और उसकी ऐतिहासिकता पर विचार कर रहे हैं। इसके साथ ही, मूर्ति की असलीता को लेकर भी उत्सुकता है, जैसे कि यह कहां से आई और इसकी उम्र क्या है।

जाने क्या कहते हैं विशेषज्ञ

भूगर्भ शास्त्री डॉक्टर प्रोफेसर रणजीत कुमार सिंह ने बताया कि यह मूर्ति आग्नेय चट्टान से बनी है। उन्होंने कहा कि मूर्ति मिलने के बाद उन्होंने नई दिल्ली के पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञ को फोटो भेजा और उनसे इसकी चर्चा की। उनके अनुसार, यह सातवीं सदी की हो सकती है। पुरातत्व विभाग के अनुसार, यह मूर्ति दुर्गा नहीं पार्वती की हो सकती है। जल्द ही विभाग एक जांच टीम भेज सकता है।

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मेरा नाम Kumar Anil है और मैं झारखण्ड के बोकारो जिले का निवासी हूँ। मैंने 2023 में कंटेंट राइटिंग की शुरुवात किया था। मुझे झारखण्ड के लोकल न्यूज़ पढ़ना और उनके बारे लिखने का शौक है।
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