गर्मियों में लोग ताजा आम खाने के लिए बाजार से खरीदते हैं। ताजा आम का स्वाद अलग होता है। पर अब बाजारों में बिकने वाले आम में जहरीले कैमिकल कैल्शियम कार्बाइड का उपयोग हो रहा है। इससे आम पूरी तरह से पीला और चमकदार दिखता है।
मेदिनीनगर (पलामू)। ताजा और पका हुआ आम खाने में अलग मजा होता है, लेकिन समस्या यह है कि अधिकांश आम बारिश के बाद ही प्राकृतिक रूप से पकते हैं।
लेकिन इस बार समय पर बारिश नहीं होने से आमों का पकाना देरी से हो रहा है, जिसके कारण व्यापारी जल्दी पैसा कमाने और आम को जल्दी पकाने के लिए जहरीले कैमिकल कैल्शियम कार्बाइड का इस्तेमाल कर रहे हैं।
आम जो कैल्शियम कार्बाइड से पकाया जा रहा है
अब दिनों बाजार में जो आम बिक रहा है, वह कैल्शियम कार्बाइड से पकाया जा रहा है। इससे पका हुआ आम पूरी तरह से पीला और चमकदार दिखता है।
चिकित्सकों के मुताबिक, कैल्शियम कार्बाइड से पके आम का सेवन सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है। इससे पाचन क्षमता में गड़बड़ी, सांस लेने में दिक्कत, और गले में जलन जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
कैल्शियम कार्बाइड से पके आम की पहचान कैसे करें
कैल्शियम कार्बाइड से पके आम पूरी तरह से पीला और चमकदार दिखता है। आप बाजार से खरीदे गए आम को पानी भरे बाल्टी या बर्तन में डालें। अगर आम पानी में तैरने लगे, तो समझें कि उन्हें केमिकल से पकाया गया है।
इसके अतिरिक्त, आम को हाथ में उठाकर देखें। इसकी बाहरी छिलके पर हल्की झुर्रियां हो सकती हैं। लोग यह मानते हैं कि यदि आम पर झुर्रियां हो, तो वे प्राकृतिक रूप से पके हैं, लेकिन यह बिल्कुल सही नहीं है।
अगर आम हल्का हरापन लिया हो और उस पर झुर्रियां भी दिखें, तो समझ लें कि वह पेड़ पर पकने से पहले ही तोड़ा गया और कार्बाइड से पकाया गया है।
आम को कैसे पकाया जाता है – यह जानिए
कम दिनों में आम को पकाने के लिए कैल्शियम कार्बाइड का इस्तेमाल होता है। इसे बैन होने के बावजूद बाजार में आसानी से मिलता है। यह एक पत्थर की तरह होता है जिसे चुना पत्थर भी कहते हैं।
कच्चे आमों के बीच में पोटली बनाई जाती है और फिर कपड़े में लपेटकर रख दी जाती है। आमों को चारों ओर रखकर टोकरी को ऊपर बोरी से बंद कर अच्छे से पैक कर दिया जाता है।
इसके बाद इसे बिना हवा वाली जगह पर 3-4 दिनों तक रखा जाता है। इस प्रक्रिया में कैल्शियम कार्बाइड और आम की नमी का संपर्क होने से एसिटिलीन गैस उत्पन्न होती है। इससे आम जल्दी से पक जाते हैं और पेड़ में पकने का इंतेजार नहीं करना पड़ता है।
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