लोकसभा चुनाव 2024 में, जो इंसान कठिनाइयों को सहता है, उसे भगवान की नजर मिलती है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन भी उनमें से एक हैं, जो क्षेत्रीय जनता के लिए अवतार हैं। मतदाता उन्हें मुक्तिदाता के रूप में देखते हैं। उनके जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए हैं। दुमका से आठ बार सांसद रहे गुरुजी पर प्रदीप सिंह का लेख…
अक्सर लोग अपने विधायक में भगवान की छवि देखते हैं। झारखंड के प्रमुख राजनीतिक दल झामुमो के नेता शिबू सोरेन की लोकप्रियता अद्वितीय है।
उनके समर्थक हर साल दुमका में उनका समर्थन करते हैं, जहां वे विशेष रूप से दो फरवरी को जमे रहते हैं। जब शिबू सोरेन उत्साहित होकर उनके समर्थकों को संबोधित करते हैं, तो उनका उत्साह चरम पर पहुंचता है। इस करिश्माई नेता की उम्र 80 वर्ष है, लेकिन उनका जोश नहीं कम होता।
लोग आदर करते हैं दिशोम गुरु
शिबू सोरेन अब स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना कर रहे हैं और अब वे सार्वजनिक सभाओं में आकर्षित हो रहे हैं। उनकी छवि अब मोर्चा के पोस्टर और बैनर पर अधिक दिखाई देती है। इस बार वे चुनाव में नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन समर्थकों की जुबान पर उनका नाम ही है। यहां के लोगों के लिए शिबू सोरेन बाबा और दिशोम गुरु के रूप में महत्वपूर्ण हैं।
परिवार में बिखराव का सामना
बीच की अवधि में शिबू सोरेन ने दो बार राज्यसभा के सदस्य बने, और 1984 में एक बार वे जामा विधानसभा से विधायक भी रहे। अब उनकी बड़ी बहू सीता सोरेन इस सीट पर हैं।सीता सोरेन अब भारतीय जनता पार्टी में हैं, और उनके बारे में यह भी खबर है कि वे शिबू सोरेन की परंपरागत सीट दुमका से उनके उत्तराधिकारी हैं। लेकिन शिबू सोरेन को अपने परिवार में बिखराव का सामना करना पड़ रहा है, जो उम्र के इस पड़ाव पर दुखद है।
आंदोलनकारी की पहचान
शिबू सोरेन ने बाबा और दिशोम गुरु के सफर को तय करने के लिए बहुत समय तक तप किया। उनका परिवार हजारीबाग जिले के गोला स्थित नेमरा गांव में रहता था। उनके पिता सोबरन सोरेन महाजनों के साथ संघर्ष करते थे और उनकी हत्या भी उसी कारण हुई थी।
शिबू सोरेन ने कई उग्र आंदोलनों का नेतृत्व किया, जैसे कि चिरूडीह हत्याकांड। इस क्षेत्र में सक्रिय महाजनों के खिलाफ आंदोलन था, जिसमें भीड़ ने कई लोगों की हत्या की थी।
शिबू सोरेन पर भी इन हत्याओं का आरोप लगा था, लेकिन बाद में उन्हें अदालत से बरी कर दिया गया। उन पर अपने पीए शशिनाथ झा की हत्या का भी आरोप लगा था, लेकिन उसे साबित नहीं किया गया। उन्होंने संसद रिश्वत कांड में भी राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी।
करिश्माई नेता शिबू सोरेन का राजनीतिक सफर उतार-चढ़ाव से भरपूर है। उन्होंने तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री का कार्यकाल संभाला। वे राज्यसभा और लोकसभा चुनावों में भी भाग लिया। 2009 में वे मुख्यमंत्री रहते हुए विधानसभा चुनाव में हार गए।
मुख्यमंत्री बने रहने के लिए उन्हें विधानसभा का सदस्य होना जरूरी था। वे तमाड़ विधानसभा उपचुनाव में उम्मीदवार रहे, लेकिन लोगों ने उन्हें स्वीकार नहीं किया। इसके बाद शिबू सोरेन ने राजनीति में नए खिलाड़ी गोपाल कृष्ण पातर उर्फ राजा पीटर से चुनाव हारा। उन्होंने दुमका लोकसभा सीट से कई चुनाव जीते।
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